
मथुरा में हरियाली तीज धूमधाम और भक्ति के साथ मनाई जा रही है। बांके बिहारी मंदिर में भगवान बांके बिहारी 10 किलो सोना और 1000 किलो चांदी से बने झूले में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। यह झूला करीब 125 अलग-अलग हिस्सों में बना है। वहीं, दक्षिण भारतीय शैली के रंगनाथ मंदिर में शाम को भगवान गोदा रंगमन्नार चांदी के झूले में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देंगे। आज दिनभर में करीब 5 लाख भक्तों के पहुंचने का अनुमान है। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए 3 किमी पहले गाड़ियां रोक दी जा रही हैं। यहां से ई-रिक्शा या ई-कार्ट की व्यवस्था है। हालांकि, ये पर्याप्त नहीं है। तीन किमी पैदल चलकर मंदिर जाना पड़ रहा है। बांके बिहारी मंदिर में हरियाली तीज पर साल में एक बार झूला डाला जाता है। यहां भगवान बांके बिहारी गर्भगृह से निकलकर आंगन में डाले गए झूले में विराजमान होते हैं। भगवान बांके बिहारी पहली बार इस झूले में 15 अगस्त 1947 को विराजमान हुए थे। बांके बिहारी ने हरियाली पोशाक धारण की
आज बांके बिहारी जी को हरे रंग की बेशकीमती जड़ाऊ पोषाक और रत्न जड़ित सोने के भूषण धारण कराए गए हैं। इसके अलावा मावा, मलाई, मक्खन, सादा मीठा घेवर, फीकी, मीठी रसीली, केसरिया फैनी का विशेष भोग अर्पित किया जाना है। इस विशेष पर्व पर ठाकुरजी के विश्राम के लिए सोने-चांदी से बना शयन शैया सजाया गया है। उसके पास चांदी का आइना सहित श्रृंगार की सभी सामग्री (सुहाग पिटारी) रखी गई है। भाव के अनुसार झूला विहार के बाद बांके बिहारी जी इसी शैया पर शयन करते हैं, फिर उठकर सजते संवरते हैं। इसीलिए इस शयन शैया पर सुहाग पिटारी चढ़ाने का विशेष महत्व है। बांके बिहारी आज 4 घंटे ज्यादा दर्शन देंगे
हरियाली तीज पर भगवान बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इसे देखते हुए दर्शन का समय 4 घंटे और बढ़ाया गया है। बांके बिहारी के दर्शन सुबह के समय 7:45 बजे से दोपहर 2 बजे तक होंगे। वहीं शाम के समय 5 बजे से रात 11 बजे तक दर्शन होंगे। आम दिनों में मंदिर सुबह 7:45 बजे से 12 बजे तक और शाम को 5:30 बजे से रात 9:30 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है। भक्तों की भीड़ को देखते हुए हरियाली तीज पर मंदिर 12 घंटे 15 मिनट खुलेगा। वहीं आम दिनों की बात करें तो मंदिर 8 घंटे 15 मिनट ही खुलता है। हरियाली तीज पर आरती के समय में बदलाव
हरियाली तीज पर भगवान बांके बिहारी जी की आरती के समय में भी बदलाव किया गया है। श्रृंगार आरती हर दिन की तरह सुबह 7.55 बजे होगी। वहीं, राजभोग आरती दोपहर 11.55 बजे की जगह 1.55 बजे होगी। इसी तरह शयन आरती रात 9.25 बजे की जगह 10.55 बजे होगी। महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के समय झूले का निर्माण शुरू हुआ इतिहासकार और बांके बिहारी मंदिर के पुजारी प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी ने बताया- बांके बिहारी मंदिर में 80 साल पहले तक पेड़ों की टहनियां लगाकर सुगंधित पुष्पों की कोमल कलियों और केला, वंदनवार वगैरह से प्राकृतिक हिंढोला यानी झूला सजाया जाता था। समय बदला और प्रभु की इच्छा, भक्तों की भावना से वर्तमान दिव्य झूले का निर्माण हुआ। बांके बिहारी जी का ये सोने-चांदी से बना झूला ब्रज ही नहीं, बल्कि विश्व में अपनी तरह का एकमात्र झूला है। सौंदर्य, आकर्षक और भव्यता को लेकर ये विश्व में विख्यात है। गोस्वामी कहते हैं- इसका इतिहास भी बहुत महत्वपूर्ण है। 1942 में महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन के समय बांके बिहारी जी के झूले का निर्माण काम बनारस के कारीगर छोटेलाल और ललन भाई के निर्देशन में 20 कारीगरों द्वारा 5 साल की मेहनत के बाद हो पाया था। झूला बनाने में एक लाख तोला यानी 1000 किलो चांदी और एक हजार तोला यानी 10 किलो सोना, शीशम, साल और सागवान की लकड़ी का उपयोग हुआ। इन लकड़ियों के लिए नेपाल में टनकपुर के जंगल की लकड़ी का सौदा कई वर्षों की लीज पर किया गया था। इसके निर्माण में सेवायत समाज, भक्त और बेरीबाला परिवार ने तन, मन, धन से सहयोग प्रदान किया था। आजादी के दिन पहली बार इस झूले में विराजे थे बांके बिहारी प्रह्लाद बल्लभ गोस्वामी के मुताबिक, साल 1947 में सावन अधिक माह होने के चलते दो महीने तक चला था। 15 अगस्त 1947 को जिस दिन भारत को आजादी मिली थी, उसी दिन ये झूला ठाकुरजी की सेवा में समर्पित किया गया था। बांके बिहारी मंदिर के गोपी गोस्वामी बताते हैं कि उसी दिन यानी 15 अगस्त 1947 को हरियाली तीज पर्व पर बांके बिहारी जी महाराज ने इस भव्य झूले में विराजमान होकर पहली बार दर्शन दिया था। करीब 125 अलग-अलग हिस्सों में बना अपने आप में अनूठा यह फोल्डिंग झूला नक्काशी कला का बेजोड़ प्रमाण है। नाचते मयूर, टेड़े-मेढे खंभे, घुमावदार सीढ़ियां और ललिता, विशाखा, चित्रलेखा, रंगदेवी नाम की सखियों की आदमकद मूर्तियां सहित उकेरे गए वेल बूंटों की कलात्मकता भावुक भक्तों को आकर्षित करतीं हैं। उस वक्त इसे बनाने में लगभग 25 लाख रुपए खर्च हुए थे। 3 किमी पहले पार्किंग, यहां से पैदल मंदिर जाना पड़ रहा शहर में वाहनों की एंट्री के सभी रास्ते बंद कर ट्रैफिक का रूट बदला गया है। मंदिर से करीब 3 किमी दूर अलग-अलग एरिया में 15 से ज्यादा पार्किंग बनाई गई हैं। यहां बाहर से आने वाले वाहनों को रोक दिया जा रहा। इसके बाद वे ई-रिक्शा या ई-कार्ट बुक कर आ सकते हैं। किराया 20 रुपए प्रति यात्री तय है। ई-रिक्शा या ई-कार्ट न मिलने पर 3 किमी श्रद्धालुओं को पैदल चलना पड़ रहा। ट्रैफिक पुलिस का कहना है कि भीड़ जैसे ज्यादा बढ़ेगी, ई-रिक्शा और ई-कार्ट भी रोक दिए जाएंगे। मंदिर के आस-पास की सभी गलियों में बैरिकेडिंग लगाकर लाइन से मंदिर में प्रवेश कराया जा रहा है। वृंदावन को 4 जोन और 18 सेक्टर में बांटा गया है। 800 से ज्यादा पुलिस कर्मियों की ड्यूटी लगाई है। भीड़ और यातायात व्यवस्था के लिए 78 बैरियर लगाए गए हैं।