
लखनऊ हाईकोर्ट ने प्राइमरी स्कूलों के विलय के मामले में राज्य सरकार से महत्वपूर्ण सवाल पूछा है। कोर्ट ने जानना चाहा कि क्या विलय का निर्णय लेने से पहले कोई सर्वेक्षण कराया गया था। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सरकार को निर्देश दिया कि यदि सर्वे हुआ है तो उसकी रिपोर्ट पेश की जाए। सीतापुर की कृष्णा कुमारी समेत 51 स्कूली बच्चों और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। याचिकाकर्ताओं के वकील एलपी मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ने कहा कि सरकार का 16 जून का निर्णय मनमाना और अवैध है। उन्होंने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत शिक्षा एक मौलिक अधिकार है। केंद्र सरकार ने 2009 में बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया था। इसके तहत 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य की गई। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, प्रत्येक एक किलोमीटर के दायरे में 300 की जनसंख्या पर स्कूलों की स्थापना की गई। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार अब एक प्रशासनिक आदेश से इन स्कूलों का विलय कर बड़ी संख्या में इन्हें समाप्त कर रही है। यह कार्रवाई संविधान और शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ है। कोर्ट ने सरकार को पूरी तैयारी और तथ्यों के साथ अपना पक्ष रखने को कहा है। मामले में शुक्रवार को फिर सुनवाई होगी।